वाराणसी : काशी मेरी शान
Varanasi : My Pride Poem by Vivekanand Jain
धर्म ध्यान की नगरी, संस्कृति की खान
गंगा जी के घाट हैं, बनारस की शान ॥
जैनधर्म के पार्श्व-सुपार्श्व
तथा चंद्रप्रभू जन्मे गंगा तीर।
श्रेयांसनाथ जी सारनाथ में
हर रहे सबकी पीर ॥
कबीर तुलसी रविदास ने लिखा
घाटों का गुणग़ान
सभी धर्मों में पूज्य हैं, काशी का पावन गंगा धाम॥
देव दीपावली, नाथ नथैया, बुढ़्वा मंगलचार
बनारस के घाटों पर मनते हैं
सब त्यौहार ॥
माता शीतला व अन्नपूर्णा
देती सबको शुभाशीष।
संकट मोचन, बाबा भोलेनाथ को नबायें अपना शीश ॥
सारनाथ में आकर बुद्ध ने किया धर्म चक्र
प्रवर्तन
दिया धर्म का ज्ञान, जिससे विश्व में हुआ परिवर्तन ॥
तुलसीदास ने लिखी यहीं
रामचरितमानस की कुण्डलियां
बनारस में गूंजी रविदास की
बाणी व कबीर की साखियां॥
अस्सी घाट से दसाश्वमेघ तक माँ गंगा की जय जय
कार
हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका से खुला है मोक्ष का
द्वार ॥
धर्म, सत्य, ज्ञान की नगरी, विश्व में निराली है।
तीन लोक से न्यारी, इसीलिये काशी अविनाशी है।।
प्रभू की कृपा से जीवन में मिलता काशी वास,
जीवन का आनंद लो, बाद में खुला मोक्ष का द्वार ॥
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