Friday, November 20, 2015

जिन खोजा तिन पाइयां : कबीर तथा रहीम के दोहे आधुनिक सूचना तकनीकि तथा इंटरनेट पर खोज के संदर्भ में

आज इण्टरनेट का प्रयोग दैनिक जीवन में नित प्रति वढ़ता ही जा रहा है। किसी भी जानकारी की प्राप्ति के लिये इण्टरनेट पर सर्च इंजिन (Search Engine) के द्वारा खोजते हैं। आज गूगल (Google), याहू (Yahoo) बिंग (Bing), आस्क (Ask) आदि का नाम सभी को याद है। इण्टरनेट से जानकारी निकालने में सामान्य सर्च इंजिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं बहीं विशिष्ट जानकारी के लिये उस विषय से सम्बंधित सर्च इंजिन भी होते हैं जिन से आवश्यकतानुसार सूचना प्राप्त की जा सकती है।
सामान्य सर्च इंजिन से सूचना खोजने पर बहुत ज्यादा परिणाम (hits/ output) प्राप्त होते हैं इन में से सही जानकारी युक्त हाइपरलिंक को खोज पाना साधारण व्यक्ति के लिये कठिन तथा समय नष्ट करने के समान होता है। फिर भी इण्टनेट पर अनेक सूचना - संदर्भ स्रोत हैं जो कि सामान्य व्यक्ति की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायक बनते हैं।
कबीर का दोहा:-
जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ,  मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ
इस दोहे के माध्यम से यह बात कही गयी है कि प्रयास करने से ही सफलता मिलती है। आज छात्रगण इण्टरनेट का प्रयोग अपनी शिक्षा, तकनीकि प्रशिक्षण के साथ नयी जानकारियों की प्राप्ति के लिये कर रहे हैं। इण्टरनेट से जानकारी निकालने में सर्च इंजिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इण्टरनेट पर खोजते समय  कई बार  नयी उपयोगी जानकारियां भी मिल जाती हैं क्योंकि इण्टरनेट पर सूचना का विशाल भण्डार है अत: जब भी कोई नयी जानकारी या उपयोगी वेवसाइट मिले उसे अवश्य नोट कर लें तथा अन्य साथियों को भी बतायें क्योंकि विचार/ सूचना/ ज्ञान (Idea/ Information/ knowledge) बांटने से वढ़ता है।
हारवर्ड बिजिनेस रिव्यू (Dec. 2013 p.59) में लिखा है कि गूगल, अमेजन तथा अन्य आज हमें आगे बढ़ते हुये दिखायी दे रहे हैं इस के पीछे का कारण यह नहीं है कि बह लोगों को वास्तविक सूचना दे रहे हैं बल्कि निर्णय लेने हेतु संक्षिप्त जानकारी दे रहे हैं 
Google, Amazon and others have prospered not by giving customers Information, but by giving them shortcuts to decisions and actions. (Ref. : HBR Dec. 2013 p.59)
मेरे विचार से सूक्ष्म एवं संक्षिप्त जानकारी के लिये इंटरनेट सर्च इंजिन आधारित संक्षिप्त सूचना उपयोगी हो सकती है, लेकिन विस्त्रित जानकारी हेतु व्यक्तिगत रूप से पुस्तकालय जाकर गहन अध्ययन जरूरी है।
गूगल भी प्रोफेसनल लाइब्रेरियन पर विश्वास करता है, एक संदर्भ में कहा गया है कि जब हम आपकी सूचना आवश्यकता को पूरा न कर पायें तब आप पुस्तकालय जाकर लाइब्रेरियन से मिलकर खोजने की नयी बिधियों की जानकारी प्राप्त करें।
हेरत हेरत हे सखी, रहया कबीरा हिराई।
बून्द समाना समन्द में, सो कत हेर्या जाई।
सूचना का भण्डार अथाह एवं विस्त्रित है और उसमें से खोजना एक कला है। सूचना प्राप्ति के लिये अनेक तरह से प्रयास करना पड़ते हैं। कई बार सही कीवर्ड नहीं होने से घण्टों का समय बर्बाद चला जाता है और उपयोगी सूचना नहीं मिल पाती। अत: उचित कीवर्ड, सही सर्च ईंजिन, सही सर्च तकनीकि के प्रयोग से ही सफलता मिलती है। अत: सूचना विज्ञान के विशेषज्ञों के सहयोग से सही जानकारी लेना चाहिये।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

सूचना सामग्री उपयोग के लिये है। पुस्तकों का लेखन कार्य तथा पुस्तकालयों का निर्माण भी नागरिकों के हित के लिये किया जाता है। पुस्तकालय पाठकों के लिये बनाये जाते हैं। पुस्तकालयाध्यक्ष भी पुस्तकों का चयन पाठकों की सूचना की पूर्ति के लिये ही करते हैं। अत: पुस्तकालय भी तरूवर के समान परोपकार के लिये हैं। ऑनलाइन डिजिटल लाईब्रेरीज पर हजारों की संख्या में ई-बुक्स मुफ्त में उपलब्ध हैं जिसका लाभ समाज का प्रत्येक व्यक्ति उठा सकता है। प्रमुख डिजिटल लाईब्रेरीज इस प्रकार हैं: डिजिटल लाईब्रेरी ऑफ इंडिया (www.dli.gov.in ); यूनीवर्सल डिजिटल लाईब्रेरी (www.udl.org); वर्ल्ड डिजिटल लाईब्रेरी (www.wdl.org) ; प्रोजेक्ट गुटनवर्ग (www.gutenberg.org) आदि।

इन ऑनलाइन डिजिटल लाईब्रेरीज के माध्यम से पाठकगण आपनी प्रसंद की पुस्तक चुनकर डाउनलोड कर सकते हैं तथा अपनी सुविधा के अनुरूप समय निकालकर पढ़ सकते हैं। डिजिटल लाईब्रेरीज पर मुख्य रूप से बह पुस्तकें उपलब्ध हैं जो कि कॉपीराइट के समय के प्रावधान से परे हैं। इन वेवसाइट के माध्यम से बहुत ही प्राचीन उपयोगी पुस्तकें पाठकों को आसानी से मिल जा रही हैं। इसका सूचना की उपलब्धता तथा डिजिटल डिवाइड को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान है।

निष्कर्ष: 

पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान का क्षेत्र बहुत ही आनंद दायक है। यहां सूचना देने बाले को भी नयी नयी जानकारियां हमेशा मिलती रहती हैं बह स्वयं भी अपडेट होता रहता है और सामने बाले व्यक्ति को भी सूचना सेवा द्वारा संतुष्टि एवं खुशी प्रदान करता है। अंत में मैं कहना चाहूंगा कि संत कबीर तथा रहीम के इन कालजयी दोहों में अपार ज्ञान छिपा है। यह दोहे आधुनिक सूचना तकनीकि के युग में भी इण्टरनेट से सूचना पुन:प्राप्ति में मार्गदर्शन प्रदान करने बाले हैं। 

Tuesday, February 24, 2015

DRDO SEMINAR

Bilingual International Seminar
Information Technology : Yesterday, Today and Tomorrow


हिंदी की बहुत ही शानदार सेमिनार (19-21 Feb. 2015)
 सभी के विचार अच्छे तथा मात्रभाषा में होने के कारण प्रभावी लगे।
मैंने भी हिंदी के ऑनलाइन सूचना स्रोत पर लेख प्रस्तुत किया। सहयोगी लेखक हैं
श्री राम कुमार दांगी (सहायक ग़्रंथालयी, काशी हिंदू वि.वि.)




Wednesday, January 21, 2015

फकीर कौम के आये हैं झोलियां भर दो?

फकीर कौम के आये हैं झोलियां भर दो?

3 सितम्बर 1911 को लखनऊ में पं. मदन मोहन मालवीय जी के भाषण के पूर्व इस कविता को सुनाया गया था। इसको सुनने के बाद काशी हिंदू विश्व विद्यालय बनाने हेतु लोगों ने दिल खोलकर दान दिया। इस का प्रकाशन काशी पत्रिका (संपादक सीताराम चतुर्वेदी) में हुआ था।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ग्रंथालय ने पं. मदन मोहन मालवीय जी से संबधित सामग्री को डिजिटल रूप में सुरक्षित करके महामना डिजिटल लाइब्रेरी के माध्यम से विश्व पटल पर ला दिया है । इसके अंतर्गत पुस्तकें, शोधग्रंथ, पत्रिकायें तथा फोटोग्राफ शामिल हैं। इसी में शामिल से एक लेख प्रस्तुत कर रहा हूं ।
(डा. विवेकानंद जैन उप ग्रंथालयी, काशी हिंदू वि.वि., वाराणसी)

फकीर कौम के आये हैं झोलियां भर दो?


इलाही कौन फरिश्ते हैं ये गदाए वतन
सफाए ‌क्ल्ब से जिनके बज्म है रौशन्॥
झुकी हुई है सबों की लिहाज से गर्दन,
हर एक जुबां पर है ताजीम औ अदब के सखुन
सफें खड़ी हैं जबानों की और पीरों की,  
खुदा की शान यह फेरी है किन फकीरों की।

फकीर इल्म के हैं इनकी दास्तां सुनलो,
पयाम कौम का दुख-दर्द वयां सुन लो।
यह दिन वो दिन है जो है यादगार हां सुन लो
      है आज गैरते कौमी का इम्तहां सुन लो।
यही है वक्त अमीरों की पेशवाई का,
      फकीर आये हैं कासा लिये गदाई का।
जो अपने वास्ते मांगें ये वो फकीर नहीं
      तमअ में दौलते दुनिया की ये असीर नहीं
अमीर दिल के हैं जाहिर के ये अमीर नहीं
      बह आदमी नहीं जो इनका दस्तगीर नहीं।

तमाम दौलते जाती लुटा के बैठे हैं,  
तुम्हारे वास्ते धूनी रमाके बैठे हैं।
सबाल इनका है तालीम का बने मंदिर,       
कलश हो जिसका हिमालासे औज में बरतर॥
इसी उमींद पै ये घूमते हैं शामोसहर,  
सदा लगाते हैं राहे खुदामें यह कहकर।
“बह खुदगरज है जो दौलत पै जान देते हैं,  
बही हैं मर्द जो विद्या का दान देते हैं”।

सबाल रद न हो इनका ये शर्त है तदवीर।
      इसी से पायेंगे ईमान आबरू तौकीर॥
यह है तरक्किये कौमीके बास्ते अकसीर्।
      बहें उलूम की गंगा पियें गरीब अमीर्॥

बकारे कौम बढ़े दूर बेजरी हो जाये।
      उजड़ गयी है जो खेती बह फिर हरी हो जाये।
जो हो रहा है जमाने में है तुम्हें मालूम
      कि हो गये हैं गरां किस कदर फिनून उलूम्।
तुम्हारी कौमसे दौलत हुई है यों मादूम,       
कि अब तरसते हैं पढ़ने को सैकड़ों मासूम्।
बह खुद तरसते हैं, मां बाप उनके रोते हैं,  
तुम्हारी कौम के बच्चे तबाह होते हैं॥

ये बेगुनाह उसी कौम के हैं लखते-जिगर।
      कि जिसने तुमको भी पाला है सूरते मादर।
जिगर पै कौमके इफलास का चले खंजर्।
      गजब खुदाका तुम्हारे दिलों पै हो न असर्॥
उसी से बेखबरी जिसके दम से जीते हो।
      उसे रूलाते हो जिस मां का दूध पीते हो?

यह कहत क्या है, यह ताऊन क्या है, क्या है बवा।
      तुम्हारी कौम पे नाजिल हुआ है कहरे खुदा।
जो राहेरास्त में होती है कोई कौम जुदा।
      इसी तरह उसे मिलती है एक रोज सजा॥
इसी तरह से हवा कौम की बिगड़ती है
      इसी तरह से गरीबों की आह पड़ती है।

गुनाह कौम के धुल जायें अब बह काम करो।
      मिटे कलंक का टीका बह फैज आम करो॥
किफा को जहल को बस दूर से सलाम करो।
      कुछ अपनी कौम के बच्चों का इंतजाम करो॥

यह काम हो के रहे चाहे जां रहे न रहे।
      जमीं रहे न रहे आसमां रहे न रहे।
ये कारे खैर में कोशिस यह कौम क दरबार्।
      लगा दो आज तो चांदी के हर तरफ अम्बार्॥

ये सब कहें कि है जिंदा ए कौम गैरतदार।
      है इसके दिल में बुजुर्गों की आबरू का बकार।
सरों में हुब्बे बतन का जुनून बाकी है
      रगों में भीष्मी अर्जुन का खून बाकी है।

मिसेज बिसेण्ट के अहसान की तुम्हे है खबर
      किया निसार बुढ़ापा तुम्हारे बच्चों पर॥
शरीक बो भी हैं इस कार खैर के अंदर।
      न आंख उनकी हो नीची रहे ये मद्दे नजर्॥
मिटे न बात कहीं तुमपै मिटने बालों की।
      तुम्हारे हाथ है शर्म उन सफेद बालों की॥

तुम्हारे बास्ते लाजिम है मालवीका भी पास।
      कि जिसकी जात से अटकी हुई है कौम की आस॥
लिया गरीब ने घर बार छोड़कर बनबास।
      जो यह नहीं है तो कहते हैं फिर किसे सन्यास॥

तमाम उम्र कटी एक ही करीने पर ।
      गिराया अपना लहू कौम के पसीने पर॥
इसी के हाथ में है कौम का सॅंवर जाना।
      तुम्हारी डूबती कश्ती का फिर उभर जाना॥

जो तुमने अब भी न दुनिया में काम कर जाना।
      तो यह समझ लो कि बेहतर है इससे मर जाना॥
गजब हुआ जो दिल इसका भी तुमसे ऊब गया।
      गिरा इस आंख से आंसू तो नाम डूब गया॥
घटाएं जहल की छाई हुई हैं तीर-ओ तार ॥
      यह आरजू है कि तालीम से हो बेड़ा पार॥

मगर जो ख्वाब से अब भी न तुम हुए बेदार।
      तो जान लो कि है इस कौम की चिता तैयार॥
मिटेगा दीन भी और आबरू भी जाएगी।
      तुम्हारे नाम से दुनिया को शर्म आएगी॥
जो इस तरह हुआ दुनिया में आवरूका जवाल।
      तो काम आयेगा उक्वा में क्या यह दौलतोमाल ॥

करो खुदाके लिये कुछ मरे हुए का ख्याल्।
      न हों तुम्हारे बुजुर्गों की हड्डियां पामाल ॥
यह आबरू तो हजारों बरस में पाई है।
      न यों लुटाओ कि ऋषियों की यह कमाई है॥

लुटाओ नामपै दौलत अगर हो गैरतदार।
      पुकार उठे ये जमाना कि है यह पर उपकार॥
है जोर हिम्मते मर्दाना कौम को दरकार।
      बरक उलट दो जमानेका मिलके सब इक बार ॥
अगर हो मर्द न यों उम्र रायगां काटो।
      गरीब कौम के पैरोंकी बेडि‌यां काटो॥

यह कारे खैर वो हो नाम चारसू रह जाय।
 तुम्हारी बात जमाने के रूबरू रह जाय ॥
जो गैर हैं उन्हें हॅंसने की आरजू रह जाय । 
गरीब कौम की दुनिया में आबरू रह जाय ॥
जरा हमैयतो गैरत का हक अदा कर लो
फकीर कौम के आए हैं झोलियां भर दो ॥

यहां से जाएं तो जाएं यह झोलियां भरकर। 
लुटाएं इल्म की दौलत तुम्हारे बच्चों पर ॥
इधर हो नाज यह तुमको कि खुश गए ये बशर।     
जो हो सका वह किया नज्र इनके टेकके सर ॥
यही हो फखृ जबानों का और पीरों का।      
सवाल रद न किया कौम के फकीरों का॥

उर्दू शब्दों को पढ़ने तथा लिखने में हुई टाइपिंग की गल्तियों के लिये अग्रिम क्षमा॥

विवेकानंद जैन॥