Monday, May 19, 2014

वाराणसी : काशी मेरी शान

वाराणसी : काशी मेरी शान द्वारा: डा. विवेकानंद जैन
 Poem on Varanasi By Dr. Vivekanand Jain

 धर्म ध्यान की नगरी, संस्कृति की खान
 गंगा जी के घाट हैं, बनारस की शान ॥1॥ 

जैनधर्म के पार्श्व सुपार्श्व व चंद्र प्रभू जन्मे गंगा तीर
 श्रेयांसनाथ जी सारनाथ में हर रहे सबकी पीर ॥2॥

कबीर तुलसी रविदास ने लिखा घाटों का गुणग़ान
सभी धर्मों में पूज्य हैं, काशी का पावन गंगा धाम॥3॥

 देव दीपावली, नाथ नथैया, बुढ़्वा मंगलचार
बनारस के घाटों पर मनते हैं सब त्यौहार ॥4॥

 माता शीतला व अन्नपूर्णा देती सबको शुभाशीष
 संकट मोचन, बाबा भोले को नबायें अपना शीश ॥5॥

 सारनाथ में आकर बुद्ध ने किया धर्म चक्र प्रवर्तन
 दिया धर्म का ज्ञान, जिससे विश्व में हुआ परिवर्तन ॥6॥

 तुलसीदास ने लिखी यहीं रामचरितमानस की कुण्डलियां
 बनारस में गूंजी रविदास की बाणी व कबीर की साखियां ॥7॥

 राजा हरिश्चंद्र ने दी, बनारस में सत्य की परीक्षा
 साधुओं ने धुनि रमायी, जय हो भोले की है नगरिया ।।8॥

 दशास्वमेव से अस्सी घाट तक होता जय जय कार
 हरिश्चंद्र, मणिकर्णिका में खुला है मुक्ति का द्वार ॥9॥

 धर्म, सत्य, ज्ञान की नगरी, विश्व में निराली है
तीन लोक से न्यारी, इसीलिये काशी अविनाशी है।।10॥

 देव दीपावली, नाथ नथैया, मनाओ घाटों पर बुढ़्वा मंगलाचार
भाग्य से मिलता काशीवास, जीवन मरण सब हैं यहां के त्यौहार॥11॥

Thursday, May 8, 2014

Chapter in Book of IFLA

Academic libraries and their religious collections: A case study of Banaras Hindu University Library by Vivekanand Jain, G C Kendadamath and Sanjiv Saraf.  IN Libraries Serving Dialogue. Edited by Odile Dupont. Berlin, DE Gruyter. ISBN 978-3-11-031693-3 (IFLA Publications, vol. 163). 





This book contains 12 Chapters based on papers submitted by IFLA RELINDIAL at Singapore.

My article in Library Review (Emerald)

It is now open access from Emerald. for full text click on DOI (Permanent URL): 10.1108/00242531311328159