Tuesday, December 3, 2013

भारत को रहने दो अखण्ड


भारत को रहने दो अखण्ड
सैकड़ों राज्य राजाओं के, सब मिटा बनाये बड़े प्रांत।
सब रहें देश बासी हिल मिल, नहिं रहे कहीं कोई अशांत॥
नेहरू पटेल का सोच यही, साकार किया था जो सपना।
विघटन करने को लोग खड़े, भरने को पेट केवल अपना॥
उठ रही मांग पूर्वांचल की, कुछ चाह रहे बुंदेल ख़ण्ड।
मिथिलांचल बोडो लेण्ड आदि, कुछ चाहेंगे बघेल ख़ण्ड॥
तेलंगाना का शोर मचा, बाहन फूंके दे लगा आग।
छ्ह सौ राजा के राज्य पुन: दे दो गायें ए नया राग।
आसाम प्रांत को तो देखो, कर दिया सात भागों में बिभक्त।
भारत का यह पुर्वी हिस्सा, हो गया आज कितना अशक्त॥
यह मधुकोड़ा सम मधु कीड़े, जो लूट रहे देश का धन पराग।
कर रहे विदेशों में धन संचय, लग जाये यहां पर भले आग ॥
कुर्सी की केवल पकड़ इन्हें, सब चाह रहे मंत्री बनना।
घर भर जाये धन धान्य से, फिर नहीं इन्हें कुछ भी कहना ॥
इन नेताओं से रखो बचा, मत करो देश के खण्ड खण्ड ।
यह भारत बन जाये प्रचण्ड, भारत को रहने दो अखण्ड ॥
रचयिता : श्री बाबू लाल जैन “सुधेश”
दिगौड़ा जिला टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश)

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