Monday, January 1, 2024

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिपेक्ष्य में भारतीय भाषाओं में लेखन तथा अनुवाद कार्य हेतु यूनीकोड तथा अनुवादिनी का उपयोग

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिपेक्ष्य में भारतीय भाषाओं में लेखन तथा अनुवाद कार्य हेतु यूनीकोड तथा अनुवादिनी का उपयोग

 

डा. विवेकानन्द जैन  
उप ग्रंथालयी
केंद्रीय ग्रंथालय, काशी हिंदू विश्व विद्यालय  
वाराणसी – 221005

 

 

सारांश : राष्ट्रीय शिक्षा नीति २०२० ने हिंदी भाषा, मातृ भाषा तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व को बढ़ा दिया है। अब हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में प्रारम्भिक शिक्षा हेतु पाठ्य सामग्री की बहुत ज्यादा आवश्यकता आ गई है। ऐसी स्थिति में सूचना तकनीकि का प्रयोग करके नई पाठ्य सामग्री का लेखन और प्रकाशन किया जा सकता है। आज सूचना तकनीकि के प्रयोग से जानकारियां तेजी से प्रचारित तथा प्रसारित हो रही हैं । इस कार्य में इण्टरनेट तथा अन्य सोसल मीडिया का विशेष योगदान है।

इस लेख में हिंदी भाषा तथा अन्य भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटर पर लेखन कार्य के आधुनिक तरीके बतलाए गये हैं बहीं अनुवाद द्वारा अनेक भाषाओं में साहित्य सृजन की जानकारी दी गई है। इसके लिए कीबो स्केनर तथा अनिवादिनी का भी वर्णन किया गया है। 

(अप्रकाशित लेख) 

Tuesday, September 5, 2023

IFLA WLIC 2023





Attended the IFLA WLIC 2023 in the Ahoy Convention Centre, Rotterdam on 21
st August, 2023. 

After the inaugural function, we attended the technical sessions on “Let's Library for Responsible AI” and “The IFLA Systematic Public Library 2023 Award Ceremony”










IFLA 2023 Rotterdam, The Netherlands

Participated in the 88th IFLA World Library and Information Congress 2023 at Rotterdam, The Netherlands from 17 to 21 August 2023. The theme of the congress was “Let’s work together Let’s Library for All.”

We (Dr. Vivekanand Jain, Deputy Librarian, Central Library, BHU and Dr. Pravin Kumar Singh, Assistant Librarian, Central Library, BHU) jointly presented the paper during the IFLA pre-satellite conference at Schiedam, Rotterdam on 18 August 2023. 




Paper presented in IFLA LPD pre-satellite meet on the topic of “Digital Audio Services to print disabled students of Banaras Hindu University: a case study” 


Saturday, November 21, 2020

Shraddhanjali to Shri Baboo Lal Jain Sudhesh




दिगौड़ा में श्रद्धांजली सभा 






 बुंदेली कवि एवम शिक्षक श्री बाबूलाल जी जैन सुधेश का 30 अगस्त 2020 को ग्राम दिगौड़ा में 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उन्होने टीकमगढ़ जिले के अनेक विद्यालयों में अध्यापन किया। जिनमें अहार, मबई, दिगौड़ा, बम्हौरी, खरगापुर, मालपीथा, नुना, लिधौरा आदि शामिल हैं। उनका एक कविता संग्रह स्वतंत्र रचनावली नाम से प्रकाशित है। आप हमेशा सामाजिक एवम धार्मिक कार्यों में सम्मलित होते रहे। आज हम सभी उनको श्रद्धांजली अर्पित करते हैं। 


बुंदेली रचना महुआ है बुंदेली मेवा : द्वारा श्री Baboo Lal Jain

बुंदेली कवि एवम शिक्षक श्री बाबूलाल जी जैन सुधेश का 30 अगस्त 2020 को ग्राम दिगौड़ा में 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। उनकी यह बुंदेली रचना "महुआ है बुंदेली मेवा" ब्लोग पर प्रकाशित कर रहे हैं। 



महुआ है बुंदेली मेवा

 

महुआ है बुंदेली मेवा

दीन हीन जन का प्रतिपालक, करत बहुत ही सेवा

महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

कामधेनु सम कल्पवृक्ष यह, महुआ जिसका नाम।

पत्ते फूल और फल इसके, सब अंग आवें काम ॥

नहीं कोई इसके सम देवा, महुआ है बुंदेली मेवा ||

 

मुरका लटा मिठाई इसकी, डुबरी फूली दाखें,

हरछट के दिन चना चिरोंजी, संग मिल इसको खावें।

पूजन में संग इसको लेवा, महुआ है बुंदेली मेवा

 

फोड़ गुली को बनते धपरा, तेल निकलता उनसे ।

खाते और बनाते साबुन, जम जाता घृत जैसे॥

बेचकर वस्त्र स्वर्ण लेवा, महुआ है बुंदेली मेवा

 

पत्ते भी बन जाते इसके, बकरी का भोजन।

काट टहनियां जला रहे हैं, कुछ इसको दुर्जन ॥

प्रभू जी इनको समझ देवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

गुली फलक तो रसगुल्ले सम, पशु जन के मन भावें,

लपकी गाय गुलेंदर खाने, महुये तर पुनि पुनि जावे।

बच्चे बीनत करत कलेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

वृक्ष कभी यदि उखड़ जाये, तो लकड़ी आती काम।

फाटक खिड़की चौखट आदिक, बनकर शोभित धाम॥

करत यह भारी जन सेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

अटा अटारी की पटनोरें, करी मियारी बनतीं।

पलंग पीठिका बेंड़ा खूंटी, मजबूती बहु धरती॥

लकड़ी बहुत काम में लेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

पशु पक्षी छाया में इसकी, नीढ़ बनाकर रहते।

साधू संत कोटर में बैठे, कठिन तपस्या करते॥

गाते शुक मैना व परेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

मधु के हैं भण्डार किंतु जन मद्यपान में लेते ।

औषधि जीवन हेतु वैद्य दें, पर कुछ विष सम सेते॥

इसमें किसे दोष हम देवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

महुआ है बुंदेली मेवा, दीन हीन जन का प्रतिपालक,

करत बहुत ही सेवा, महुआ है बुंदेली मेवा॥

 

प्रेषक :

डा. विवेकानंद जैन पुत्र श्री बाबूलाल जैन

दिगौड़ा टीकमगढ़ मध्यप्रदेश

मो. 9450538093


Sunday, January 12, 2020

New Year at Ganga Ji


Visit to Assi ghat, Ganga Ji for taking spiritual energy and blessings of God.

Sunday, May 5, 2019

खुशी का मूल्यांकन : हैप्पीनेस इंडेक्स


खुशी का मूल्यांकन : हैप्पीनेस इंडेक्स
भारतीय जीवन पद्धति उत्सव एवं उल्लास के साथ जिंदगी जीने की कला सिखाती है। “सर्वे भवंतु सुखना” की सोच लेकर हमें जीवन में आगे वढ़ना चाहिये। सभी की खुशी के लिये कार्य करना चाहिये। भारतीय संस्कृति में जरूरत से ज्यादा संग्रह करने बाले का नहीं बल्कि त्यागमय जीवन जीने बाले व्यक्ति को मह्त्व दिया जाता है। आधुनिक समय में खुशियों को भी हैप्पीनेस इंडेक्स से मापा जाने लगा है। इसी पर मैं अपने विचार कविता के माध्यम से प्रकट कर रहा हूं।

खुशियां बांटने से बढ़ती हैं, आइडिया भी बांटने से बढ़ता है।
लेकिन जीवन का गणित उल्टा है, यहां जोड़ने से नहीं
बल्कि कुछ भी घटाओ, इसी से हैप्पीनेस इंडेक्स बढ़ता है  
क्योंकि भारतीय संस्कृति में संग्रह नहीं त्याग महत्वपूर्ण है।

हमें चाहिये कि अपने लिये नहीं परिवार के लिये कुछ करें,
अपने लिये नहीं समाज के लिये कुछ करें,
अपने लिये नहीं देश और दुनिया के लिये कुछ करें,
जिससे पुन: बसुधैव कुटुम्बकम का सपना साकार हो।

अच्छे विचारों से हैप्पीनेस इंडेक्स बढे‌गा।
सकारात्मक सोच से हैप्पीनेस इंडेक्स बढे‌गा।
सबको साथ लेकर चलोगे तो हैप्पीनेस इंडेक्स बढे‌गा
जमीन से जुड़े रहोगे, अपनों से मिलते रहोगे तो
जीवन में हैप्पीनेस इंडेक्स अवश्य बढे‌गा ॥

जिंदगी की भागदौड़ में रुककर स्वमूल्यांकन भी जरूरी है अत:  
खुद को खुद के अंदर सर्च करो, कभी अपने ऊपर भी रिसर्च करो।

बच्चों में जैसे संस्कार डालोगे, परिणाम भी उसी अनुरूप आयेगा
वरना, स्कूल की फीस के बदले, बच्चे बृद्धाश्रम की फीस भर देंगे।  

आजकल लोग कामयाबी के पीछे जिंदगी भर दौड़ते रहते हैं। इसी पर डा. अनेकांत जैन ने लिखा था :
कुछ लोगों को कामयाबी में सुकून नजर आया
और बह दौड़ते ही चले गये।
हमें सुकून में कामयाबी नजर आयी, और हम ठहर गये।

शहरों के फ्लेट सिस्टम में
मनुष्य अधर में लटका है, ना छत अपनी ना जमीन अपनी,
फिर भी बाईफाई से देश और दुनिया से जुड़ा हुआ है
और एक क्लिक में सभी से ऑनलाइन सम्बंध बनाये है।
इसी में लाइक देखकर खुश भी हो जाता है। क्या यह नयी हैप्पीनेस है?

आज से कई वर्ष पूर्व हिंदी के राष्ट्र कवि श्री मैथली शरण गुप्त ने एक कविता
लिखी थी जिसका शीर्षक है :  नर हो न निराश करो मन को
यह रचना आज भी हम सभी के लिये प्रेरणादायी है :

नर हो, न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
, यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
, कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो
, न निराश करो मन को, नर हो, न निराश करो मन को॥

इसी कड़ी में एक और प्रेरणादायक कविता है:
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने बालोंं की कभी हार नहीं होती
कुछ किये बिना ही जय जयकार नहीं होती, कोशिश करने बालोंं की कभी हार नहीं होती॥ (kavitakosh.org)

अत: हमें कभी भी जीवन में निराश नहीं होना चाहिये बल्कि हमेशा प्रयास जारी रखना चाहिये, एक ना एक दिन सफलता अवश्य मिलेगी। अत: हमेशा मस्त रहो, स्वस्थ्य रहो, खुशियां बांटो, और जीवन का आनंद लो। हैप्पीनेस इंडेक्स की चिन्ता मत करो यह तो स्वत: बहुत ऊपर चला जायेगा।

हमारे भारत देश का दिल आज भी गांव में बसता है। गांव का जीवन आज भी मिलनसार अपनेपन को लिये हुये है। अब गांव से शहरों की ओर पलायन नहीं बल्कि शहरों से गांव की ओर हेप्पीनेस के लिये जाना होगा ।

द्वारा : विवेकानंद जैन वाराणसी मो. 94505 38093